109 सीटों पर ‘इमोशनल कार्ड’ बना बड़ा फैक्टर, इंडिया गठबंधन के ‘सियासी खेल’ का तोड़ निकालने में जुटी बीजेपी?

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डिजिटल डेस्क, मुंबई। देश में लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को समाप्त हो गया। सभी पार्टियां अब दूसरे चरण के चुनाव को लेकर अपनी रणनीति पर काम कर रही है। लेकिन एनडीए और इंडिया गठबंधन की नजर दिल्ली, झारखंड, महाराष्ट्र और बिहार पर टिकी हुई है। इन चार राज्यों में कुल 109 सीटें हैं। जिनमें बिहार में 40, झारखंड में 14, दिल्ली में 7 और महाराष्ट्र में 48 सीटें शामिल हैं। इन राज्यों में काफी हद तक जनता का मूड तय करेगा कि देश में किसी सरकार बनेगी? क्योंकि, इन राज्यों की सियासत में बीते डेढ़ सालों से काफी उठापटक देखने को मिली है। यहां विपक्ष की ओर से इमोशनल कार्ड भी खेला जा रहा है। ऐसे में आइए समझते हैं कि इन राज्यों में विपक्ष किस रणनीति पर काम कर रहा है?

दिल्ली का सियासी माहौल हाल ही में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर कथित दिल्ली शराब घोटाला मामले में भष्ट्राचार के आरोप लगे हैं। वह अभी तिहाड़ जेल में बंद हैं। जांच एजेंसी दावा कर रही है कि दिल्ली शराब नीति घोटाला मामले में केजरीवाल भी शामिल थे। हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हो पाया है कि केजरीवाल इस भ्रष्ट्राचार में लिप्त थे भी या नहीं। इधर, राजनीतिक जानकारों के एक बड़े तबके का मानना है कि जिस तरह से आम आदमी पार्टी (आप) के नेता केजरीवाल के जेल जाने को मुद्दा बना रहे हैं। इसका नुकसान बीजेपी को हो सकता है। बीजेपी दिल्ली की सभी 7 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। वहीं, कांग्रेस और केजरीवाल की पार्टी यहां मिलकर चुनाव लड़ रही है। दिल्ली में आप 4 और कांग्रेस 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। यहां की सभी सीटों पर छठे चरण यानी 25 मई को चुनाव होंगे।

महाराष्ट्र में टूटती पार्टियों से किसे फायदा? 48 लोकसभा सीटों वाले महाराष्ट्र की सियासत में साल 2022 से ही बड़ा उलटफेर देखने को मिल रहा है। साल 2022 में शिवसेना में दरार आई। जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ। शिंदे गुट ने बीजेपी को अपना समर्थन दिया और राज्य में बीजेपी और शिंदे गुट के गठबंधन की सरकार बनी। 30 जून 2022 को एकनाथ शिंदे राज्य के मुख्यमंत्री बने। इसके बाद साल 2023 में एनसीपी भी दो गुटों में बंट गई। इस लोकसभा चुनाव में शिवसेना और एनसीपी का एक धड़ा एनडीए और दूसरा धड़ा इंडिया गठबंधन में शामिल है। हालांकि, शिवसेना (UBT) के नेता उद्धव ठाकरे और शरद पवार की पार्टी ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी– शरद चंद्र पवार’ इंडिया गठबंधन की ओर से बैटिंग कर रही है। यहां शरद पवार और उद्धव ठाकरे के साथ उनकी पार्टी टूटने की सहानुभूति जनता में नजर आ रही है। साथ ही, ये दोनों नेता चुनाव में पार्टी टूटने को चुनावी मुद्दा भी बना रहे हैं। जिसे इमोशनल कार्ड के तौर भी देखा जा रहा है। राज्य में पहले चरण के चुनाव में पांच सीटों (चंद्रपुर, भंडारा-गोंदिया, गढ़चिरौली, चिमूर, रामटेक और नागपुर) पर चुनाव हो चुके हैं।

झारखंड में हुए उलटफेर के मायने? 14 लोकसभा सीटों वाले झारखंड का सियासी माहौल काफी अलग नजर आ रहा है। साल 2000 में बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना। तब से अब तक इस राज्य में केवल बीजेपी नेता रघुवर दास ने ही साल 2014 से 2019 के बीच मुख्यमंत्री का कार्यकाल पूरा किया। इसके बाद ऐसा लग रहा था कि हेमंत सोरेन भी अपना मुख्यमंत्री कार्यकाल पूरा कर लेंगे। लेकिन, साल 2024 के फरवरी महीने में हेमंत सोरेन को कथित भूमि घोटाला मामले में जांच एजेंसियों के शिकंजे में फंस गए। इसके बाद राज्य में किसी तरह उनकी सरकार बच गई। लेकिन, सोरेन को भूमि घोटाला मामले में अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी। झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन की राजनीति राज्य के 26 फीसदी आदिवासी समुदाय के इर्द-गिर्द घुमती है। ऐसे में झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता आदिवासी सीएम के साथ हुए अन्याय को लेकर जनता के बीच चुनाव में जा रहे हैं। खुद पूर्व सीएम हेमंत सोरेन ने केंद्र की बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया है कि वे लोग आदिवासी नेता को इतने बढ़े पद पर नहीं देखना चाहते हैं, इसलिए उन्होंने आदिवासी सीएम से कुर्सी छीन ली है। आदिवासी समुदाय के बीच सोरेन की पकड़ अच्छी होने के कारण एक बड़ा समुदाय झारखंड मुक्ति मोर्चा पार्टी के साथ खड़ा है। ऐसे में इंडिया गठबंधन को यहां फायदा मिलने की उम्मीद नजर आ रही है।

बिहार में ‘तेजस्वी फेवर’ कितना कारगर? लगभग 23 सालों से बिहार की सत्ता में काबिज नीतीश कुमार अब तक 9 बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। सियासी गलियारों में एक नारा बिहार की सियासत के लिए काफी ज्यादा चमक-धमक के साथ गूंजता है। वह है ‘नीतीशे कुमार’। राज्य में किसी भी पार्टी के पास ज्यादा सीटें हो, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनेंगे। इस बात की पुष्टि वे कई बार कर चुके हैं। हालांकि, बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के बाद नीतीश कुमार बीजेपी के नेतृत्व में मुख्यमंत्री बने। हालांकि, 2022 के अगस्त महीने में नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मारते हुए आरजेडी के साथ बिहार में महागठबंधन के साथ सरकार बनाई। इसके बाद लोकसभा चुनाव के ऐन पहले नीतीश कुमार ने जनवरी के आखिर में एनडीए में शामिल होकर आरजेडी और कांग्रेस को बिहार में बड़ा झटका दे दिया।

इसके बाद फ्लोर टेस्ट के दौरान पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और बीजेपी के विरोध में भाषण दिया। इस दौरान तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर भरोसा करने पर भी सवाल उठाए। बिहार में जब से तेजस्वी यादव की सरकार गिरी है तब से ही वह बिहार में अपने साथ हुए धोखे को लेकर जेडीयू और बीजेपी पर हमला बोल रहे हैं। यहां तेजस्वी इंडिया गठबंधन की ओर से अकेले मैदान में डटे हुए हैं।

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